वैसे तो ग्रंथों में आठ अलग-अलग प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है। लेकिन शाब्दिक अर्थ के मामले में प्रेम-विवाह के आगे सब फेल हैं। कितना सुन्दर शब्द है- 'प्रेम-विवाह'। एक
तरफ तो दुनिया के सभी धर्मों के धर्म गुरु इंसानो से आपस में प्रेम करने का पाठ पढ़ाते हैं, और यदि उनके इस पाठ से शिक्षा ग्रहण करके यदि स्वयं उन्हीं की संतान प्रेम को व्यावहारिक जीवन में उतारते हुए प्रेम विवाह करले, तो ये प्रेम के शिक्षक रुद्रावतार धारण करने में तनिक भी देर नहीं करते। बड़े आश्चर्य का विषय है कि समाज को, नाबालिक विवाह मंजूर है, दहेज के रूप में सोदेबाजी या लेनदेन का विवाह मंजूर है और उम्र के हिसाब से अनमेल विवाह भी स्वीकार है। किन्तु प्रेम-विवाह स्वीकार नहीं क्योंकि कहीं न कहीं दो युवाओं के इस कदम से समाज के अंहकार को ठेस पंहुचती है।अब आइये पे्रम करने वाले दीवानों की इस दुस्साहसभरी मानसिकता पर विचार करें।
विज्ञान की नजर से- रसायन विज्ञानियों का मानना है कि ऐसा तब होता है जब शरीर में एक विशेष प्रकार हार्मोन्स का स्राव होने लगता है।
मनोविज्ञान- किन्तु यदि हम मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से सोचेंगे तो एक नई और अधिक व्यावहारिक बात सामने आएगी। वह यह कि इंसानी मन की यह फितरत होती है कि उसे जिस काम से रोका जाए ,उसे उसी काम में अधिक रस मिलता है।बचपन से ही लड़के-लड़की को एक दूसरे से दूर रहने की समझाइस मिलती रहती है, यहीं से उनके मन में आकर्षण के बीज बुवने लगते हैं। एक दूसरा कारण यह है कि इंसान को तैयार माल अधिक आकर्षित करता है। कपड़े खरीद कर दर्जी को नाप देकर फिर ड्रेस तैयार हो, इसमें वो आकषण नहीं जो रेडीमेड कपड़ों में होता है।
ग्रह भी कराते है प्रेम विवाह
जब किसी लड़का और लड़की के बीच प्रेम होता है तो वे साथ साथ जीवन
बीताने की ख्वाहिश रखते हैं और विवाह करना चाहते हैं। कोई प्रेमी अपनी
मंजिल पाने में सफल होता है यानी उनकी शादी उसी से होती है जिसे वे चाहते
हैं और कुछ इसमे नाकामयाब होते हैं। ज्योतिषशास्त्री इसके लिए ग्रह योग को
जिम्मेवार मानते हैं। देखते हैं ग्रह योग कुण्डली में क्या कहते हैं।
ज्योतिषशास्त्र
में "शुक्र ग्रह" को प्रेम का कारक माना गया है । कुण्डली में लग्न, पंचम,
सप्तम तथा एकादश भावों से शुक्र का सम्बन्ध होने पर व्यक्ति में प्रेमी
स्वभाव का होता है। प्रेम होना अलग बात है और प्रेम का विवाह में परिणत
होना अलग बात है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है
और सप्तम भाव विवाह का। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो
प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने
पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।
ऐसा
नहीं है कि केवल इन्हीं स्थितियो मे प्रेम विवाह हो सकता है। अगर आपकी
कुण्डली में यह स्थिति नहीं बन रही है तो कोई बात नहीं है हो सकता है कि
किसी अन्य स्थिति के होने से आपका प्रेम सफल हो और आप अपने प्रेमी को अपने
जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करें। पंचम भाव का स्वामी पंचमेश शुक्र अगर
सप्तम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है ।
शुक्र अगर अपने घर में मौजूद हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
शुक्र
अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में
स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है। नवमांश कुण्डली जन्म कुण्डली का
शरीर माना जाता है अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है और नवमांश
कुण्डली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना
100 प्रतिशत बनती है। शुक्र ग्रह लग्न में मौजूद हो और साथ में लग्नेश हो
तो प्रेम विवाह निश्चित समझना चाहिए । शनि और केतु पाप ग्रह कहे जाते हैं
लेकिन सप्तम भाव में इनकी युति प्रेमियों के लिए शुभ संकेत होता है। राहु
अगर लग्न में स्थित है तो
नवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में से किसी
में भी सप्तमेश तथा पंचमेश का किसी प्रकार दृष्टि या युति सम्बन्ध होने पर
प्रेम विवाह होता है। लग्न भाव में लग्नेश हो साथ में चन्द्रमा की युति हो
अथवा सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ चन्द्रमा की युति हो तब भी प्रेम विवाह
का योग बनता है। सप्तम भाव का स्वामी अगर अपने घर में है तब स्वगृही
सप्तमेश प्रेम विवाह करवाता है। एकादश भाव पापी ग्रहों के प्रभाव में होता
है तब प्रेमियों का मिलन नहीं होता है और पापी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से
मुक्त है तो व्यक्ति अपने प्रेमी के साथ सात फेरे लेता है। प्रेम विवाह के
लिए सप्तमेश व एकादशेश में परिवर्तन योग के साथ मंगल नवम या त्रिकोण में हो
या फिर द्वादशेश तथा पंचमेश के मध्य राशि परिवर्तन हो तब भी शुभ और अनुकूल
परिणाम मिलता है।
ऐसे सपने दिखे, तो होगा प्रेम विवाह
आजकल
अधिकांश युवा प्रेम विवाह करना चाहते हैं और इसके लिए वे कई तरह के प्रयास
भी करते हैं। फिर भी वे यह नहीं समझ पाते कि उनका प्रेम विवाह होगा या
नहीं। ऐसे में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले सपनों
से भी प्रेम विवाह होने या ना होने के संकेत प्राप्त होते हैं।
- यदि कोई युवती स्वप्न में किसी सुंदर चिडिय़ा को चहचहाती हुई देखती है, तो उसका प्रेम विवाह तक अवश्य पहुंचता है।
-
यदि कोई लड़की स्वयं तो पलंग पर बिस्तर बिछाते हुए देखे तो शीघ्र ही किसी न
किसी से उसका प्रेम संबंध बन सकता है या प्रेमी से उसका विवाह हो सकता है।
-
यदि कोई सपने में सर्कस में कलाबाजी दिखाए या किसी और को करतब दिखाते देखे
तो उस व्यक्ति के प्रेम में कोई तीसरा व्यक्ति दखल दे सकता है।
-
यदि कोई व्यक्ति सपने में फिल्म देखे और फिल्म में प्रणय दृश्य देखता है तो
उसके प्रेम संबंध में बड़ी परेशानियां उत्पन्न हो जाती है।
- यदि सपने में कोई संगीत सुनता है तो उस व्यक्ति को प्रेम संबंध में सुख प्राप्त होता है।
प्रेम
और विवाह पर ग्रहों का प्रभाव
यदि
दो प्रेमियों में से किसी भी एक की कुंडली में द्वितीयेश, सप्तमेश और
दशमेश तीनों ग्रह दशम् भाव में हों, तो प्रेम संबंधों का प्रभाव व्यापार,
व्यवसाय या नौकरी के लिए शुभ फलदायी होता है। द्वितीयेश या सप्तमेश
चतुर्थ में हो और चंद्रमा, मंगल, शु से युति, दृष्टि या परिर्वतन हो, तो
अपने ननिहाल के परिवार से संबंध बनता है।
सृष्टि के आरंभ से आज तक नर और नारी के बीच एक असमाप्त ऐन्द्रजालिक
सम्मोहन विद्यमान है। प्राचीन भारतीय वाड्:मय में ऐसे कितने ही उदाहरण
मिलते हैं, जिनसे नर-नारी का अन्योन्याश्रय संबंध द्योतित होता है।
न हि शक्तिमय: शक्त्या विप्रयोगोऽस्ति जातुचित्।
तस्माच्छक्ते:
शक्तिमतस्तादात्मयान्निर्वृ तिर्द्ध्रयो:।
(शिवपुराण 721)
नर और नारी के मध्य शाश्वत आकर्षण ही प्रेम है। किसी भी सभ्यता और
संस्कृति की शुरुआत प्रेम से ही हुई है। समस्त समाजों, संस्कारों,
विधि-विधानों, संस्थाओं और स्वीकृतियों से प्राचीन प्रेम मनुष्य की
अनिवार्य जरूरत है। शास्त्रों, पुराणों के अनुसार प्रकृति-पुरुष या
पार्वती और शिव के प्रतिमान शक्ति और शक्तिमान के प्रतिरूप हैं।
कुमारसंभव में महाकवि कालिदास द्वारा भी सृष्टिकर्ता को स्वयं दो भागों
में विभक्त किया है- नर और नारी। शास्त्रों में गांधर्व विवाह के कितने
ही उदाहरण आए हैं। गांधर्व विवाह ही प्रेम विवाह का प्राचीनतम स्वरूप है।
ऋषि 'मनु' ने इस विवाह को 'मनुस्मृति' में वर्णित किया है।
महाभारत के रचयिता 'व्यास' के अनुसार-
सकामाया: सकामेन
निर्मन्त्र: श्रेष्ठ उच्चते।
आज के भौतिक युग में स्त्री-पुरुष का आपस में बार-बार मिलना तथा बाद में
प्रेम विवाह में परिणीत हो जाना आम बात है। इस कामाकर्षण, राग संवर्द्धन
को संयमित करने का सामाजिक, मनोवैज्ञानिक स्थिरता तथा सांस्कृतिक मूल्यों
को बनाए रखने का उचित पर्याय विवाह है।
रामायण काल में भी स्वयंवर हुए हैं। अर्थात् कन्या को पूरी छूट थी कि वह
अपनी पसंद से विवाह करे।
यस्यां
मनोऽनुरमते चक्षुश्च प्रतिपद्यते।
तां विद्यात् मुख्यलक्ष्मीकां किं ज्ञानने करिष्यति॥
(भारद्वाज गृह्यसूत्र)
पुरुष को उस कन्या से विवाह करना चाहिए, जिसमें उसका मन रमे तथा नेत्र
बराबर उसके रूप में उलझे रहें। ऐसी कन्या शुभ लक्षणों से संपन्न मानी
जाती है। उसके ज्ञान तथा बुद्धि का क्या प्रयोजन।
प्रेम-विवाह के ज्योतिषीय दृष्टिकोण: जन्मकुंडली में प्रेम विवाह संबंधी
संभावनाओं का विश्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचम् भाव का अध्ययन करना अति
आवश्यक है क्योंकि पंचम् भाव व्यक्ति से संकल्प, विकल्प, इच्छा, मैत्री,
साहस, भावना और योजना-सामर्थ्य का ज्ञान कराता है। सप्तम् भाव से विवाह,
सुख, सहभागी तथा सहभागिता देखते हैं।
नवम् भाव से प्रेम विवाह में जाति धर्म देखते हैं। एकादश भाव इच्छा
पूर्ति का भाव होता है। द्वितीय भाव पारिवारिक संतोष को प्रकट करता है।
सप्तम् भाव काम त्रिकोण का मुख्य भाव है। एकादश भाव काम त्रिकोण का तीसरा
और काम इच्छा पूर्ति का भाव है। प्रथम भाव या लक्षण स्वयं। सप्तम् भाव
शक्ति अर्थात् शिव और शक्ति का मिलन भाव है। जन्म कुंडली में पुरूष के
लिए शुक्र तथा स्त्री (कन्या) के लिए मंगल ग्रह का अवलोकन किया जाता है।
शुक्र आकर्षण, सेक्स, प्रणय, सौंदर्य, विलासिता का प्रेरक है। मंगल
उत्साह-उत्तेजना का। जन्मकुंडली में मंगल जितना प्रभावी होगा, जातक उसी
के अनुसार साहसी और धैर्यवान होता है। यह दोनों ग्रह काम परक
क्रियाकलापों के उत्तरदायी हैं।
चंद्रमा मन-भावना, इच्छाशक्ति का स्वामी है। बृहस्पति (गुरू)
योजना-निर्माता है। इन चारों ग्रहों का प्रभाव सामाजिक स्तर पर प्रणय योग
को जन्म देता है।
प्रेम विवाह के योग
प्रेम विवाह क लिए पंचम, सप्तम् व नवम् (5-7-9) भाव तथा उनके
स्वामियों का आपसी संबंध, दृष्टि या परिर्वतन द्वारा होना।
एकादशेश या एकादश में स्थित ग्रह का संबंध सप्तमेश या सप्तम् से पंचम् या
पंचमेश से, शुक का संबंध लग्न, पंचम् या सप्तम् भाव से हो।
पंचम भाव का शुक्र प्रेम का शुद्ध स्वरूप स्थापित करता है।
पंचमेश और सप्तमेश का एक साथ होना।
पंचमेश का मंगल के साथ पंचम भाव में होना।
लग्नेश का पंचमेश, सप्तमेश या भाग्येश से संबंध।
सप्तमेश का एकादश भाव में तथा एकादशेश का सप्तम् में होना।
मंगल, शुक्र तथा लग्नेश का संबंध
शनि पर राहु मंगल का प्रभाव हो तथा चंद्रमा मध्य में आ जाए।
मंगल और शुक्र का युति योग, तृतीय या चतुर्थ भाव में हो, तो पड़ोस में या
एक ही बिल्डिंग में रहने वाले व्यक्ति से प्रेम संबंध बनता है। यदि
बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हो, तो प्रेम संबंध के पश्चात् विवाह भी
हो जाता है।
मंगल और शुक्र दोनों नवम् या दशम् भाव में हों, तो आकर्षक कार्य स्थान
में होता है। साथ कार्य करने वाले या उच्च पद के व्यक्ति के प्रति।
बृहस्पति तीसरे स्थान में अथवा केंद्र या त्रिकोण में हो तो विवाह की
संभावना बनती है।
पंचमेश के साथ बुध या बृहस्पति के साथ मंगल और शु का संबंध, चतुर्थ,
पंचम, दशम् या एकादश भाव(4, 5, 10, 11) में बने तो स्कूल, कॉलेज में,
शिक्षक या सहपाठी के बीच प्रेम-संबंध बनता है।
यदि लग्नेश और षष्ठेश एक साथ हों या दृष्टि संबंध हो, तो व्यक्ति अपने
प्रेम संबंध को बनाए रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। यदि लग्नेश या
षष्ठेश में से एक ग्रह शु या चंद्रमा हो और लग्न, पंचम,नवम् या द्वादश
(1-5-9-12) भाव में हो, तो प्रेम संबंध में स्थायित्व की संभावना होगी।
(लग्न वृषभ, कर्क, तुला या कुंभ, धनु हो)। यदि दो प्रेमियों में से किसी
भी एक की कुंडली में द्वितीयेश, सप्तमेश और दशमेश तीनों ग्रह दशम् भाव
में हों, तो प्रेम संबंधों का प्रभाव व्यापार, व्यवसाय या नौकरी के लिए
शुभ फलदायी होता है। द्वितीयेश या सप्तमेश चतुर्थ में हो और चंद्रमा,
मंगल, शुक्र से युति, दृष्टि या परिर्वतन हो, तो अपने ननिहाल के परिवार
से संबंध बनता है। दक्षिण भारत में यह योग्य अक्सर मिलता है, क्योंकि
वहां मामा से विवाह किया जाता है। बृहस्पति की युति, बुध या चंद्रमा या
शुक्र के साथ पंचम, सप्तम या नवम् भाव में ही, तो एक सामान्य स्थिति के
व्यक्ति का संबंध बहुत ही धनवान या उच्च पद के व्यक्ति से होगा।
यदि यह योग वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला या मीन राशि में बने तो प्रबल योग
होता है। पुरुष कुंडली में शुक्र तथा स्त्री कुंडली में समान राशिगत हों
अर्थात् जिस राशि में पु्रुष का शुक्र हो, स्त्री कुंडली में उसी राशि
में मंगल हो, तो उन दोनों में प्रेमाकर्षण होता है। यदि दोनों ग्रहों के
अंश समान हों, तो अपरिसीम आकर्षण उत्पन्न होता है। यदि स्त्री कुंडली में
मंगल और पुरुष कुंडली में शुक्र आपस में केंद्र या त्रिकोण में हों, तो
आपसी प्रेमाकर्षण होता है। परंतु यह दोनों 2-12 या षडाष्टक (6-8) हों तथा
राशियां भी अलग-अलग हों, तो विकर्षण रहता है। यदि यही शुक्र-मंगल 3-11
हों, तो आकर्षण धनीभूत होता है। किसी भी देश की सरकार में उच्च
पदाधिकारियों के प्रेम संबंध स्थापित होने में उस व्यक्ति की कुंडली मे
शु के साथ-साथ सूर्य और मंगल पर भी ध्यान देना होगा।
राजनीतिज्ञों और प्रशासनिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के कारक ग्रह सूर्य
और मंगल हैं तथा प्रेम अथवा विवाह का कारक ग्रह शुक्र है। इसी प्रकार जल
सेना, जल पोतों पर काम करने वाले व्यक्तियों की कुंडली में शुक्र का
संबंध चंद्रमा और मंगल से भी होता है। फिल्म जगत् में काम करने वाले
अभिनेता, अभिनेत्री, डायरेक्टर, टेक्नीशियन अथवा कलाकारों के प्रेम
संबंधों तथा विवाह में चंद्रमा एवं शुक्र का प्रभाव रहता है।
यदि चंद्रमा या शुक्र अथवा दोनों 6-7-8 या 12वें भाव में हों और इनके साथ
मंगल, बुध, शनि राहु या हर्षल का युति योग, दृष्टि योग बने तो ऐसे कलाकार
का किसी व्यक्ति के साथ लंबे समय तक प्रेम संबंध चलेगा। यदि चंद्रमा या
शुक्र की उपर्युक्त स्थिति के साथ बली बृहस्पति या केतु का दृष्टि या
युति योग बने तो प्रेम संबंध विवाह में परिणीत हो जाएगा। यदि चंद्रमा या
शु की उपर्युक्त स्थिति के साथ बुध या बृहस्पति या केतु का किसी प्रकार
का संबंध नहीं हो तथा साथ ही चंद्रमा या शुक्र की उपर्युक्त स्थिति के
साथ मंगल, शनि, राहू अथवा हर्शल का किसी भी प्रकार का संबंध हो, तो उक्त
प्रेम या विवाह अधिक समय तक नहीं चलेगा।
धर्म परिवर्तन
प्रेम एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो कि जाति-धर्म से अलग है। प्रेम करने वाले
दो इंसान विवाह करने के लिए अपना धर्म तक परिवर्तित कर लेते हैं।
यदि सप्तम् और नवम् भाव में एक-एक क्रूर ग्रह हों, तथा इन दोनों का किसी
अन्य बली ग्रह से कोई संबंध नहीं बन रहा हो तो ऐसा व्यक्ति विवाह के लिए
अपना धर्म परिर्वतन कर लेगा। यदि सप्तम् भाव में चंद्रमा, मंगल या शनि की
राशि (कर्क, मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ)हो तथा द्वादश भाव में कोई भी दो
क्रूर ग्रह हों, तो विवाह के लिए धर्म परिवर्तन होगा।
यदि शनि छठे या सातवें भाव में स्थित हो या छठे भाव से सप्तमेश को दृष्ट
करे तो ऐसे व्यक्ति परंपरा के विरुद्ध जा कर अपनी जाति के बाहर या विदेशी
के साथ प्रेम विवाह करते हैं। शनि की विशेषता है कि किशोरावस्था में
प्रेम संबंध स्थापित करा देता है और कई वर्ष पूर्व समाप्त हुए प्रेम
संबंध को दोबारा शुरू करा देता है या यह कहें कि विवाहित जीवन में अनुचित
या अनैतिक प्रेम संबंध बना देता है। यह स्थिति तब आती है जब शनि सप्तम
भाव पर गोचर करता है या शनि की महादशा अथवा अंर्तदशा हो। शनि के प्रभाव
के कारण 15-20-28 अथवा 30 वर्ष पुराने संबंध नए सिरे से स्थापित हो जाते
हैं।
जन्म कुंडली में पुरुष के लिए शुक्र तथा स्त्री (कन्या) के लिए मंगल ग्रह
का अवलोकन किया जाता है। शुक्र आकर्षण, सैक्स, प्रणय, सौंदर्य विलासिता
का प्रेरक है। मंगल उत्साह-उत्तेजना का जन्मकुंडली में मंगल जितना
प्रभावी होगा, जातक उसी के अनुसार साहसी और धैर्यवान होता है।
सारांश : सभी योग तभी फलीभूत होते हैं जब उन योगों में सम्मिलित ग्रहों
की दशा या अंतर्दशा आएगी (देश-काल-पात्र का ध्यान अवश्य रखना चाहिए)। दशा
के साथ-साथ गोचर भी अनुकूल होना चाहिए। विवाह एक सामाजिक कार्य है। प्रेम
संबंध और विवाह दोनों को अलग नहीं रखा जा सकता। विवाह के पश्चात् प्रेम
संबंध बने, यह अनुचित है। प्रेम विवाह कब होगा? इसके लिए सर्वप्रथम
कुंडली में विवाह का योग होना आवश्यक है। जन्म लग्न, चंद्र लक्षण तथा
शुक्र लग्न से सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में अनुकूल गोचर में तथा शुभ
मुहूर्त में ही विवाह संपन्न होगा।