सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं।

यदि सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाएगी।

राई और प्रियंगु को ÷ह्रीं' मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके किसी स्त्री के ऊपर डाल दें तो वह वश में हो जाएगी।

शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाएं जिसका नाम लिखा है। फिर उस पुतली को छाती से लगाकर रखें। इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी।

बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ पीसकर जिसे सुंघाया जाए वह वशीभूत हो जाएगा।

नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेप माथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।

नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें। लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।

शुभ दिन एवं शुभ लग्न में सूर्योदय के पश्चात उत्तर की ओर मुंह करके मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप शुरू करें। ३१ दिनों तक ३ माला का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध करके वशीकरण तंत्र की किसी भी वस्तु को टोटके के समय इसी मंत्र से २१ बार अभिमंत्रित करके इच्छित व्यक्ति पर प्रयोग करें। अमुक के स्थान पर इच्छित व्यक्ति का नाम बोलें। वह व्यक्ति आपके वश में हो जाएगा। मंत्र इस प्रकार है -

ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुक महीपति मे वश्यं कुरू कुरू स्वाहा।

रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं। फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें। इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है। ऐसा काजल किसी को नहीं देना चाहिए।

अनार के पंचांग में सफेद घुघची मिला-पीसकर तिलक लगाने से समस्त संसार वश में हो जाता है।

कड़वी तूंबी (लौकी) के तेल और कपड़े की बत्ती से काजल तैयार करें। इसे आंखों में लगाकर देखने से वशीकरण हो जाता है।

बिल्व पत्रों को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। इसका तिलक करके साधक जिसके पास जाता है, वह वशीभूत हो जाता है।

कपूर तथा मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक लगाने से साधक को जो भी देखता है, वह वशीभूत हो जाता है।

केसर, सिंदूर और गोरोचन तीनों को आंवले के साथ पीसकर तिलक लगाने से देखने वाले वशीभूत हो जाते हैं।

श्मशान में जहां अन्य पेड़ पौधे न हों, वहां लाल गुलाब का पौधा लगा दें। इसका फूल पूर्णमासी की रात को ले आएं। जिसे यह फूल देंगे, वह वशीभूत हो जाएगा। शत्रु के सामने यह फूल लगाकर जाने पर वह अहित नहीं करेगा।

अमावस्या की रात्रि को मिट्टी की एक कच्ची हंडिया मंगाकर उसके भीतर सूजी का हलवा रख दें। इसके अलावा उसमें साबुत हल्दी का एक टुकड़ा, ७ लौंग तथा ७ काली मिर्च रखकर हंडिया पर लाल कपड़ा बांध दें। फिर घर से कहीं दूर सुनसान स्थान पर वह हंडिया धरती में गाड़ दें और वापस आकर अपने हाथ-पैर धो लें। ऐसा करने से प्रबल वशीकरण होता है।

प्रातःकाल काली हल्दी का तिलक लगाएं। तिलक के मध्य में अपनी कनिष्ठिका उंगली का रक्त लगाने से प्रबल वशीकरण होता है।

कौए और उल्लू की विष्ठा को एक साथ मिलाकर गुलाब जल में घोटें तथा उसका तिलक माथे पर लगाएं। अब जिस स्त्री के सम्मुख जाएगा, वह सम्मोहित होकर जान तक न्योछावर करने को उतावली हो जाएगी।

सम्मोहन

सम्मोहन विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके अपनी ओर आकर्षित करती है।विधिवत् रूप से शिक्षा लेना कोई आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह तो मन और इच्छा शक्ति का ही खेल है। आप स्वयं के प्रयास, निरंतर अभ्यास और असीम धैर्य से सम्मोहन के प्रयोग सीखना आरंभ कर दें तो आप भी अपने अंदर यह अद्भुत शक्ति जाग्रत कर सकते हैं। यह विद्या मन की एकाग्रता और ध्यान, धारणा समाधि का ही मिला-जुला रूप है।

आप किसी भी आसन में बैठकर शांतचित्त से ध्यानमग्न होकर मन की गहराइयों में झांकने का प्रयास करें। हालांकि प्रारंभ में आपको कुछ बोरियत अथवा कठिनाई महसूस होगी परंतु यहीं तो आपके धैर्य की परीक्षा आरंभ हो जाती है। आप विचलित न हों और धैर्यपूर्वक प्रयास जारी रखें। मन को कहीं भी न भटकने दें। मन के समस्त विचारों को एक बिंदु पर ही केंद्रित कर लें और सिर्फ दृष्टा बन जायें अर्थात् जो कुछ भी मन के भीतर चल रहा है उसे चलने दें, छोड़ें नहीं। सिर्फ देखते जायें। आपको तो बस मन की गहराइयों में उतरकर झांकने का प्रयास करना है। शनैः शनैः आप महसूस करेंगे कि आपको आंशिक सफलता प्राप्त हो रही है। आपको कुछ अनोखा सा सहसूस होने लगेगा। बस यहीं से आरंभ होती है आपकी वास्तविक साधना और अब आप तैयार हो जाएं एक अद्भुत जगत में पदार्पण करने के लिए। जहां विचित्रताएं और आलौकिक अनुभूतियां बांहें पसारे आपका स्वागत करने को आतुर हैं। यहां आकर आपको सब कुछ (भूत-वर्तमान व भविष्य) एक चलचित्र की भांति स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगता है।

ध्यान के द्वारा मन की गहराइयों में आकर उसका रहस्य जाना जा सकता है। मन को वश में करने की प्रमुख विधि ध्यान ही है। सम्मोहन अथवा वशीकरण विद्या में दूसरों को वश में करने से पूर्व स्वयं अपने मन को अपने ही वश में करना परम आवश्यक है। जब आपका मन आपके नियंत्रण में हो जाये तो दूसरों को वशीभूत करना तो फिर बायें हाथ का खेल है।

सम्मोहन में प्रवीणता हासिल करने के सिर्फ तीन ही नियम हैं। पहला अभ्यास, दूसरा और ज्यादा अभ्यास तथा तीसरा और अंतिम नियम है निरंतर अभ्यास।

इस विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके आकर्षित करती है।

भारतीय मनीषियों ने जहां एक ओर सम्मोहन सीखने के लिए यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे आवश्यक तत्व निर्धारित किये हैं। वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य विद्वानों और सम्मोहनवेत्ताओं ने हिप्नोटिज्म में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए सिर्फ प्राणायाम और त्राटक को अधिक महत्व दिया है। पाश्चात्यवेत्ताओं का मानना है कि श्वास-प्रश्वास पर नियंत्रण एवं त्राटक द्वारा नेत्रों में चुंबकीय शक्ति को जाग्रत करके ही मनुष्य सफल हिप्नोटिस्ट बन सकता है।

त्राटक के द्वारा ही मन को एकाग्र करके मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। यहां हम अपने भारतीय ऋषि-मुनियों और सम्मोहनविज्ञों के दीर्घकालीन अनुभव का लाभ उठाते हुए उनके द्वारा प्रदत्त कुछ नियमों का भी यदि पालन कर सकें तो हम शीध्रता से सम्मोहन में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। आहार-विहार की शुद्धि, विचारों में सात्विकता, प्राणायाम-त्राटक और ध्यान का नियमित अभ्यास तथा असीम धैर्य और विश्वास के संयुग्मन से सम्मोहन विद्या को पूर्णता के साथ आत्मसात् किया जा सकता है। वैसे पाश्चात्यवेत्ताओं के मतानुसार सिर्फ प्राणायाम व त्राटक साधना करके भी सम्मोहन सीखने में कोई हानि नहीं है।

हिप्नोटिज्म का उपयोग मुख्यतः मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में किया जाता है। शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग पूर्णतः सफल रहा है। पश्चिमी देशों में तो सम्मोहन को एक विज्ञान के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त हो चुकी है और वहां के समस्त अस्पतालों में अन्य चिकित्सकों, रोग-विशेषज्ञों की भांति हिप्नोटिस्ट्स (सम्मोहनवेत्ताओं) के लिए भी अलग से पद निर्धारित होते हैं। अब तो वहां की पुलिस भी अपराधों की रोकथाम करने एवं अपराधियों से अपराध कबूल करवाने में हिप्नोटिज्म का भरपूर उपयोग करने लगी है, परंतु विडम्बना यही है कि जिस देश में इस विद्या की उत्पत्ति हुई यानि भारतवर्ष में आज सैकड़ों वर्षों पश्चात् भी सम्मोहन को मान्यता नहीं मिल पायी है।

सम्मोहन का अभ्यास साधकों को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है। जहां एक ओर उनकी आत्मिक शक्ति प्रबल होती है वहीं दूसरी ओर उनके आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होकर इच्छा-शक्ति सृदृढ़ हो जाती है। इन सबका साधक के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है।

सम्मोहन विद्या का उपयोग सदैव दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए ही करना चाहिए। प्रतिकूल अथवा विरोधी भावना से किया गया सम्मोहन का प्रयोग प्रायः असफल ही रहता है। साधक को कभी भी अपनी इस शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। उसे इस शक्ति को जनकल्याण में उपयोग करना चाहिए। सम्मोहन का एक काला भाग यह भी है कि इस विद्या का उपयोग करके अपराध व अन्य बुरे कार्य भी करवाये जा सकते हैं लेकिन इस विद्या का दुरुपयोग करने के परिणामस्वरूप साधक की शक्ति का अत्यधिक अपव्यय होने लगता है और संचित शक्ति शीघ्र ही नष्ट हो जाती है अथवा साधक को मानसिक विकार उत्पन्न कर देती है।

बिंदु त्राटक :

एक वर्गाकार सफेद कार्ड बोर्ड/ड्राइंग पेपर लेकर उसके बीचोंबीच में एक छोटा-सा काली मिर्च के आकार का काले रंग का गोल बिंदु बना लें। बिना शीशे वाले लकड़ी के फ्रेम के ऊपर कार्ड बोर्ड को चिपका दें और कमरे की दीवार पर इसे पर्याप्त उंचाई पर टांग दें।

अब उस बोर्ड से लगभग तीन फुट की दूरी पर जमीन पर आसन बिछाकर सुखासन अथवा पद्मासन में बैठ जायें और काले बिंदु पर दृष्टि को एकाग्र कर लें। कुछ देर के अभ्यास के पश्चात् जब काला बिंदु कभी ओझल हो जाये और कभी पुनः प्रकट होने लगे तो समझना चाहिए कि आपको सफलता मिलना आरंभ हो गई है और अभ्यास निरंतर जारी रखें।

जब आंखों से पानी आने लगे तो उठ जायें और अपनी आंखें ठंडे पानी अथवा गुलाब जल से धो लें। तत्पश्चात् अगले दिन पुनः अभ्यास करें।

कुछ दिनों के अभ्यास के पश्चात जब काला बिंदु नजरों से पूर्णतः ओझल हो जाये और सिर्फ सफेद ड्रॉइंगशीट ही दिखाई देने लगे तो समझना चाहिए कि आपको पूर्ण सफलता प्राप्त हो चुकी है। इस प्रकार से यह अभ्यास कम से कम पंद्रह दिनों तक करना चाहिए।

बिंदु त्राटक का अभ्यास करने से मन एकाग्र होता है और साधक की आंखों में चुंबकीय शक्ति उत्पन्न होने लगती है।

दीपक त्राटक :

रात्रि के समय शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाकर अपनी आंखों की सीध में ढाई-तीन फीट की दूरी पर रख लेना चाहिए। बैठने की स्थिति जमीन पर आसन बिछाकर अथवा सोफे या कुर्सी पर बैठकर भी बनाई जा सकती है।

दीपक को जलाकर उसकी लौ पर

अपना ध्यान केन्द्रित करें। कुछ देर के अभ्यास के पश्चात् फूंक मारकर लौ को बुझा दें और अंधेरे में देखने का अभ्यास करें। कुछ दिनों के निरंतर अभ्यास के पश्चात् आपकी आंखों को बेधक दृष्टि प्राप्त हो जायेगी और आप अंधेरे में भी देखने में पूर्णतः सक्षम हो जायेंगे। इस प्रकार से निरंतर कम से कम बीस दिनों तक नियमापूर्वक अभ्यास करें। दीपक त्राटक का अभ्यास करने से आपको अलौकिक दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। इससे आपकी आंखों में अग्नि के समान चमक पैदा हो जायेगी। कोई भी व्यक्ति आपकी आंखों में आंखें डालकर बात करने का प्रयास करेगा तो वह तुरंत परास्त होकर मानसिक रूप से आपका आधिपत्य स्वीकार कर लेगा।

प्रतिबिंब त्राटक :

प्रतिबिंब त्राटक एक अति सरल और महत्वपूर्ण साधना है। इसका अभ्यास दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर किया जाता है। सर्वप्रथम एक फुट चौड़ा और एक फुट ऊंचा चौकोर एक बढ़िया कांच (दर्पण) लेकर फ्रेम में कसवाकर कमरे में किसी एक दीवार पर इतनी उंचाई पर लगा दें कि जमीन पर बैठने के पश्चात् दर्पण आपकी आंखों की सीध में रहे।

अब जमीन पर आसन बिछाकर दर्पण से तीन-चार फीट की दूरी पर बैठ जायें और प्राणायाम का अभ्यास करें। (यहां ध्यान देने योग्य आवश्यक तथ्य यह है कि प्रतिबिम्ब त्राटक में स्नान और प्राणायाम का सर्वाधिक महत्त्व होता है। अतएव इस अभ्यास से पूर्व स्नान और प्राणायाम अत्यावश्यक है।) तत्पश्चात् दर्पण में दिखाई दे रहे अपने प्रतिबिंब की दोनों भृकूटियों के मध्य अपनी दृष्टि को एकाग्र करके धीमी गति से सांस लेना आरंभ कर दें। कम से कम बीस मिनट तक प्रतिदिन इसी तरह से अभ्यास करें।

कुछ दिनों के अभ्यास के पश्चात् आपका प्रतिबिंब कुछ-कुछ धुंधला-सा दिखाई देने लगेगा और दर्पण में आपको अनायास ही कुछ दृश्य या चेहरे दिखाई देंगे जिन्हें पूर्व में आपने कभी नहीं देखा होगा। इस प्रकार के नवीन दृश्य देखने का तात्पर्य है कि आप सही रास्ते पर चल रहे हैं। आपके अंतर्मन में दबी हुई तीव्र आकांक्षाएं ही आपको चित्रस्वरूप में दर्पण में दिखाई देती हैं। इसी प्रकार कुछेक दिन तक और अभ्यास करते रहने के परिणामस्वरूप आपको ये दृश्य भी दिखाई देने बंद हो जायेंगे और उसके स्थान पर आपको एक चमकदार प्रकाश दिखाई देगा। यह अवस्था ÷तुरीयावस्था' कहलाती है जिसके अंतर्गत साधक का जागृत मन विलुप्त होकर सर्वत्र स्वयं ही व्यापक हो जायेगा। यदि प्रतिबिंब त्राटक का नियमित अभ्यास किया जाये तो साधक मात्र चालीस दिन के भीतर ही ÷तुरीयावस्था' को प्राप्त कर लेता है। जिसे साधना की सफलता माना जाता है।

इस साधना में प्रयोग किए जाने वाले दर्पण को दैनिक उपयोग में नहीं लेना चाहिए अपितु साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात इस दर्पण को किसी महीन मलमल के वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए। यह ध्यान में अवश्य रखने योग्य तथ्य है कि इस दर्पण पर किसी की नजर न पड़े। साधक भी सिर्फ साधना के समय ही इस दर्पण को इस्तेमाल करे।

प्रतिबिंब त्राटक की साधना के परिणामस्वरूप साधक की आंखें ओजस्वी और तेजमय हो जाती हैं। उसकी आंखों में एक विशेष प्रकार की ऐसी चमक उत्पन्न हो जाती हो कि जो भी शख्स एक बार उन आंखों में झांक ले तो वह तुरंत उसके वश में हो जायेगा। साधक के लिए फिर कोई भी कार्य असंभव नहीं रह जाता है। इस साधना के पश्चात् साधक मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक को भी सुविधापूर्वक सम्मोहित कर सकता है। यहां तक कि जड़ अथवा निर्जीव पदार्थों को भी सम्मोहित कर पाने में संक्षम हो जाता है।

त्राटक के अभ्यास के अतिरिक्त श्रीयंत्र की विधिवत् उपासना कुंडलिनी जागरण तथा गायत्री मंत्र की साधना से भी सम्मोहन शक्ति प्राप्त की जा सकती है।

सम्मोहन व वशीकरण - लाभ कैसे लें-

आमतौर पर सम्मोहन का अर्थ वशीकरण से लगाया जाता है। परंतु यह सम्मोहन से बहुत नीचे की बात है। इसी कारण सम्मोहन कला का सम्मान जितना विदेशों में होता है, उतना ही हमारे देश में इसे वशीकरण मानने से अंधविश्वास से जोड कर देखा जाता है। सच भी है क्योंकि कुछ तांत्रिक वशीकरण विद्या का दुरुपयोग करने से नहीं हिचकते।

वशीकरण बनाम सम्मोहन -

वशीकरण का अर्थ है किसी को वश में करवशीकरण का अर्थ है किसी को वश में करना। इसके लिये सबसे जरूरी चीज है - ध्यान। जिस विषय वस्तु को अपने वश में करने की इच्छा हो तो उसके लिये अपना मन केंद्रित करना ही ध्यान है। ध्यान से हमारे शरीर में अदभुत ऊर्जा का संचार होता है। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनि ध्यान लगा कर तेजस्वी हो गये, उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज व मुस्कान रहती थी। इसी प्रकार हम जितना अधिक ध्यान या मेडिटेशन करेंगें उतना ही अधिक हमारा व्यक्तित्व निखर कर आयेगा। हम आत्मविश्वास से लबरेज हो जायेंगें और इस प्रकार सामने वाले व्यक्ति को अपने वश में करना आसान हो जायेगा। यह है वशीकरण।

सम्मोहन में मन का अहम कार्य होता है। मन के कई स्तर होते हैं। इनमें से एक है - आत्म चेतन मन। यह मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है बल्कि हकीकत से अवगत कराता है। इस मन की साधना ही सम्मोहन है। यह मन किसी भी अतीत या भविष्य को जानने की क्षमता रखता है। सम्मोहन से विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना आदि किया जा सकता है।से विज्ञान व किंवदन्तियों के बीच की सीमा रेखा भी कह सकते हैं। पश्चिम देशों में इसे विज्ञान के रूप में विकसित किया गया है, परंतु हमारे देश में इसे योग साधना व त्राटक का अंग माना गया है। इसे विज्ञान के रूप में लाने का श्रेय जाता है डा. मेस्मर को। वे सम्मोहन से रोगी का उपचार किया करते थे। हिप्नोटिज्म यानि सम्मोहन शब्द का आविष्कार डा० जेम्स ब्रेड ने किया था। सम्मोहन व्यक्ति के मन की वह अवस्था है जिसमें उसका चेतन मन धीरे धीरे तंद्रा की अवस्था में चला जाता है और अर्ध चेतन मन सम्मोहन की प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित कर लिया जाता है।

सम्मोहन के बहुत से उदाहरणों में यह स्पष्ट रुप से देखा गया है कि सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति को उसके बचपन की किसी भी अवस्था तक ले जाया जा सकता है। कुछ सम्मोहन शास्त्री तो सम्मोहित होने वाले व्यक्ति के पिछले जन्म तक के विषय मालूम कर लेते हैं। क्योंकि सम्मोहन में सम्मोहन करने वाले व सम्मोहित होने वाले के बीच एक तरह का संबंध जुड़ जाता है जो उन दोनों के बीच के सारे पर्दे गिरा कर सच्चाई को सामने लाता है। सम्मोहन

एक ऐसी कला है जिसमें सम्मोहित व्यक्ति को केवल सम्मोहन करने वाले की ही आवाज सुनाई देती है और वह उस आवाज के निर्देशों का पालन करता है।

सम्मोहन के विभिन्न तरीके -

सम्मोहन विद्या में किसी व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिये अपनाये गये विभिन्न तरीके इस प्रकार से हैं -

ध्यान प्राणायाम नेत्र त्राटक

उक्त तरीकों द्वारा सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है। परन्तु ये कार्य किसी योग्य गुरू के सानिध्य में ही करने चाहिये।

कुछ अन्य तरीके भी आजमाये जाते हैं जो इस प्रकार से हैं -

कुछ लोग अंगूठे को आंखों की सीध में रखकर सम्मोहन क्रिया करते हैं।

कुछ लोग सम्मोहन चक्र व घड़ी के पेंडुलम की मदद से भी सम्मोहन क्रिया करते हैं।

कुछ लोग लाल बल्ब व कुछ लोग मोमबती को एकटक देखते हुये भी सम्मोहन कर सकते हैं।

सम्मोहन से प्रभावित होने वाले लोग -

आम तौर पर लोगों का विचार होता है कि कमजोर इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति को ही सम्मोहित किया जा सकता है। जबकि दृढ इच्छाशक्ति वाले को भी सम्मोहित करना मुश्किल नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मोहित करने का तरीका समान नहीं होता। यह व्यक्ति के स्वभाव पर भी निर्भर करता है कि उसे सम्मोहित किया जा सकता है या नहीं। सम्मोहन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है -

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१५ प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन पर सम्मोहन का असर नहीं होता।

४० प्रतिशत लोगों का सम्मोहन के समय मासपेशियों का तनाव कम हो जाता है और पलके झपकने लगती हैं।

१५ प्रतिशत लोग सम्मोहन के समय तंद्रा की अवस्था में चले जाते हैं और छूने पर कुछ भी अनुभव नहीं करते।

२० प्रतिशत लोग सम्मोहित करते समय समाधिस्त हो जाते हैं और कहे गये सुझावों का पालन करते हैं।

सम्मोहन में नींद -

सम्मोहन प्रक्रिया के दौरान सम्मोहित होने वाले व्यक्ति को नींद आ जाती है परन्तु ये नींद साधारण नींद नहीं होती। साधारण नींद व सम्मोहन की नींद में अंतर है। साधारण नींद में हमारा चेतन मन अपने आप सो जाता है व अर्ध चेतन मन अपने आप जाग्रत हो जाता है तथा किसी बाहरी शक्ति का उपयोग नहीं होता है। जबकि सम्मोहन में सम्मोहन कर्ता दूसरे व्यक्ति के चेतन मन को सुला कर उसके अचेतन मन को आगे लाता है और अपने सुझावों के अनुसार उसे कार्य करने के लिये तैयार करता है।

सम्मोहन द्वारा रोग उपचार -

मानव को होने वाले रोग दो प्रकार के होते हैं -

1 जिनके कारण और कार्यक्षेत्र पूर्णतः शारीरिक होते हैं इन्हें शारीरिक रोग कहा जाता है। २ जिनके कारण मानसिक होते हैं और लक्षण शारीरिक होते हैं। इन्हें क्रियागत रोग कहते हैं। प्रायः सभी क्रियागत रोगों में सम्मानव को होने वाले रोग दो प्रकार के होते हैं - 1 जिनके कारण और कार्यक्षेत्र पूर्णतः शारीरिक होते हैं इन्हें शारीरिक रोग कहा जाता है। २ जिनके कारण मानसिक होते हैं और लक्षण शारीरिक होते हैं। इन्हें क्रियागत रोग कहते हैं। प्रायः सभी क्रियागत रोगों में सम्मोहन लाभदायक है। सम्मोहन की तंद्रावस्था में दिये गये सुझाव इतने प्रभावकारी होते हैं कि इनसे रोगी के बहुत से मानसिक रोग दूर किये जा सकते हैं। जैसे कि किसी को तंद्रावस्था में यदि ये सुझाव दिया जाये कि शराब बुरी लत है और ये उसके सिरदर्द का मुख्य कारण है तो जागने पर जब वो शराब पीयेगा तो उसे लगेगा कि उसका सिर दर्द कर रहा है। इस तरह से उसे शराब से अरूचि पैदा हो जायेगी और वह शराब आदि बुरी लतों से छुटकारा पा लेगा। हमारे मन व मस्तिष्क में बहुत सी ग्रंथियां पैदा हो जाती हैं जो बाद में किसी रोग में तब्दील हो कर व्यक्ति को परेशान कर देती हैं। सम्मोहन से उनका कारण ढूंढ कर उनका निवारण किया जा सकता है। अनेक ऐसे रोग हैं जिनमें सम्मोहन चिकित्सा द्वारा उपचार किया गया है और रोगी को लाभ मिला है - सिरदर्द, कमर दर्द, पांव या हाथ दर्द डर, अनिंद्रा, मानसिक तनाव, विषाद लकवा, मिग्री कमजोर याददाश्त हकलाना, तुतलाना हृदय रोग नंपुसकता कब्ज मोटापा कमजोर आंखें बुरी आदतें जैसे शराब, सिगरेट निम्न कार्यों में भी सम्मोहन विद्या द्वार कार्य को पीडा रहित कर लाभ लिया गया है - विभिन्न तरह के आपरेशन दंत चिकित्सा प्रसूति यदि रोगी धनात्मक विचारों के साथ अपने रोग का निदान ढूंढे तो शीध्रता से रोग से छुटकारा पा सकता है। सम्मोहन चिकित्सा इस विषय में कारगार सिद्ध होती है। सम्मोहन द्वारा रोगी के रोग के अतिरिक्त उसके स्वभाव का भी इलाज किया जाता है। अनेक विर्द्याथियों की स्मरण शक्तियों में सुधार सम्मोहन चिकित्सा द्वारा संभव हुआ है। लोगों की कार्य क्षमता में वृद्वि भी सम्मोहन द्वारा की जा सकती है। भारत देश में तो कई शारीरिक रोगों का कारण मन ही होता है जिनसे बेहाशी, पागलपन, माइग्रेन के अल्सर, डायरिया का रोग लग जाता है। माइग्रेन का इलाज के लिये सम्मोहन की अवस्था में रोगी की जब अचेतन मन की परतें खुलती हैं तो रोग का उपचार मिल जाता है। हृदय रोग के कारण भी मन में भय, शंका, निराशा, ईर्ष्या, क्रोध, आवेश आदि विषैले विचार हैं। किसी रोग का भय भी शारीरिक व मानसिक रोग दे सकता है। सम्मोहन इस दशा में अति उपयोगी सिद्ध हुआ है। मनोरोग विशेषज्ञ डा० चारकाट के अनुसार तो ऐसा कोई भी मानसिक रोग नहीं है जो सम्मोहन द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता। इसका कारण है कि सम्मोहन शक्ति रोगी के मन-मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है जिसके कारण रोग का निवारण जड से होता है। सम्मोहन द्वारा स्वयं के रोगों का भी उपचार किया जा सकता है। शरीर के किसी भी अंग में रोग या दर्द हो तो योग के माध्यम से वहां अपना पूर्ण ध्यान लगा कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करके स्वयं की चिकित्सा की जा सकती है। लगातार उस अंग के स्वस्थ होने की कल्पना से उस रोग के उपचार में सफलता मिल जाती है।  

सम्मोहन के अन्य लाभ -्त मंत्र का तीनों काल एक एक माला एक मास तक जपने से यह मंत्र सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगें वहीं वश में होगा।

२. बजरंग मंत्र

ऊ पीर बजरंगी राम लक्ष्मण के संगी। जहां जहां जाये फतह के डंके बजाये॥ अमुक' को मोह के मेरे पास न लाये । तो अंजनी का पूत न कहाय॥ दुहाई राम जानकी की॥ इस मंत्र को ११ दिन तक ११ माला जाप कर सिद्ध कर लें। रामनवमी या हनुमान जयंती का दिन इस कार्य के लिये अति शुभ है। प्रयोग के समय दूध या दूध से बने पदार्थ पर ११ बार मंत्र पढकर खिला या पिला देने वशीकरण होगा।

३ सिंदूर मोहन मंत्र

हथेली में हनुमंत बसे, भेरू बसे कमार।

नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।

मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर। सबकी नज+र बांध दे, तेल सिंदूर चढ़ाऊ तुझे। तेल सिंदूर कहां से आया, कैलास पर्वत से आया। कौन लाया, अंजनी का हनुमंत, गौरी का गणेश लाया। काला गोरा तोतला तीनो बसे कपार। बिन्दा तेल सिंदूर का, दुश्मन गया पाताल। दुहाई कामिया सिंदूर की, हमे देख शीतल हो जाये। सत्य नाम, आदेश गुरु की, संत गुरु संत कबीर।

कामीया सिंदूर' पाया जाता है। इसे लगातार सात रविवार तक उक्त मंत्र का १०८ बार जाप कर मंत्र को सिद्व कर लें। प्रयोग के समय कामीया सिंदूर पर ७ बार उक्त मंत्र पढकर अपने माथे पर टीका लगायें। टीका लगाकर जहां जायेंगें, सभी वशीभूत होते जायेंगें।