पृथ्वी मुद्रा अंगूठे से तीसरी अंगुली - अनामिका (रिंग फिंगर) के पोर को अंगूठे के पोर के साथ स्पर्श करने पर पृथ्वी मुद्रा बनती है.शेष तीनो अंगुलियाँ अपनी सीध में खड़ी होनी चाहिए.. लाभ - जैसे पृथ्वी सदैव
पोषण करती है,इस मुद्रा से भी शरीर का पोषण होता है.शारीरिक दुर्बलता दूर
कर स्फूर्ति और ताजगी देने वाला, बल वृद्धिकारक यह मुद्रा अति उपयोगी है.जो
व्यक्ति अपने क्षीण काया (दुबलेपन) से चिंतित व्यथित हैं,वे यदि इस मुद्रा
का निरंतर अभ्यास करें तो निश्चित ही कष्ट से मुक्ति पा सकते हैं. यह
मुद्रा रोगमुक्त ही नहीं बल्कि तनाव मुक्त भी करती है..यह व्यक्ति में
सहिष्णुता का विकाश करती है. |