वरुण मुद्रा कनिष्ठिका (सबसे छोटी अंगुली) तथा अंगूठे के पोर को मिलाकर शेष अँगुलियों को यदि अपनी सीध में राखी जाय तो वरुण मुद्रा बनती है.. लाभ - यह मुद्रा रक्त संचार संतुलित करने,चर्मरोग से मुक्ति
दिलाने, रक्त की न्यूनता (एनीमिया) दूर करने में परम सहायक है.वरुण मुद्रा
के नियमित अभ्यास से शरीर में जल तत्व की कमी से होने वाले अनेक विकार
समाप्त हो जाते हैं.वस्तुतः जल की कमी से ही शरीर में रक्त विकार होते
हैं.यह मुद्रा त्वचा को स्निग्ध तथा सुन्दर बनता है. |