केतु यंत्र


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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में केतु यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से केतु का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।

केतु यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं

इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।


यंत्र का उपयोग


केतु देव को प्रसनन करना होतो यंत्र के सममुख गणेश जी की पूजा की व्यवस्था करनी चाहिए।

केतु की शान्त के लिए कुत्ते को भोजन कराया जाता है। इसलिये यह उपाय लाभकारी रहेगा।

कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीड़ित होता है अस्तु जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभ प्रत होता कभी-कभी राहु की शान्ती के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है।

केतु की शान्त के लिए कुत्ते को भोजन कराया जाता है। इसलिये यह उपाय लाभकारी रहेगा।