महाकाली यंत्र

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दशमहाविद्याओं में काली प्राथमिता सर्वत्र देखी जाता है कालका पुराण के अनुसार मातंग मुनि के आश्रम में मां काली का सभी देवताओं ने स्तवन किया था महाकाली प्रलय काल से सम्बद्ध होने से अतएव कृष्णवर्णा हैं। वे शव पर आरूढ़ इसीलिए है। कि शक्तिविहीन विश्व मृत ही है। शत्रुसंहारक शक्ति भायावह होती हैं, इसीलिए काली की मूर्ति भयावह है। शत्रु संहार के बाद विजयी योद्धा का अट्टहास भीषणता के लिए होता है, इसलिए महाकाली हँसती रहती हैं।

आद्यशक्ति मां महाकाली अपरोक्ष या परोक्ष बाधांओं को नष्ट करके शक्ति प्रदान करती है। इस अद्भुत शक्ति द्वारा मानव अनेक सफलता प्राप्त करता है। और निश्चिन्त जीवन व्यतीत करता है। इस यंत्र की चल अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा होती है।

यंत्र का उपयोग

महाकाली की पूजा सर्वकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है विशेष रूप से अत्याचारी शत्रु से रक्षा व त्राण पाने के लिए। माया के जाल से छूटकर मोक्ष प्राप्ति के लिए महाकाली की पूजा सर्वश्रेष्ठ है। संसारी जीव असुरों, दुष्टों से रक्षा के लिए मां की पूजा करते हैं।

वाद-विवाद, मुकदमें में जीतने के लिए, प्रतियोगिता में प्रतिद्वन्द्वी को परास्त करने के लिए, दौड़, कुश्ती आदि युद्ध में मल्लयुद्ध में किसी भी प्रकार के युद्ध, शास्त्रार्थ में विजय के लिए काली की उपासना तरुन्त फल देती है।