नवग्रह यंत्र


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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रह प्रतिकूल होने पर प्रत्येक कार्य में असफलता नजर आती है। ऐसी स्थिति में नवग्रह यंत्र को चल या अचल प्रतिष्ठा करके धारण करने से अथवा पूजन करने से नवग्रहों का शीघ्र ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगता है।

नवग्रह यंत्र दो प्रकार के होते हैं। प्रथम नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है द्वितीय नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्रायः दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं

इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भयं नष्ट होते हैं शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है व्यापार आदि में सफलता मिलती है समाज उन्नति प्राप्त होती है तथा कार्यो किसी भी प्रकार की बांधा उत्पन्न नहीं होती है।


यंत्र का उपयोग


सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए इस यंत्र को सम्मुख रखकर विष्णु भगवान का पूजन, हरिवंश पुराण की कथा की व्यवस्था करनी चाहिए।

चन्द्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भोले शिव की उपासना करनी चाहिए।

मंगल देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।

बुध देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख दुर्गाजी की पूजा तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।

बृहस्पति देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिए। यदि सन्तान का प्रश्न हो तो हरि पूजन करें।

शुक्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए।

शनि देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भौरव जी की पूजा करनी चाहिए।

राहु देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख भैरव जी की पूजा करना चाहिए।

केतु देव को प्रसनन करना होतो यंत्र के सममुख गणेश जी की पूजा की व्यवस्था करनी चाहिए।

शान्त एक मौलिक नियम यह भी है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है उससे सम्बन्धित रत्न आदि धारण किया जाय अथवा यंत्र रखकर वैदिक मंत्रों द्वारा अनुष्ठान किया जाये।